मैं पूछता हूँ दरवाज़े पे कौन है ?
रात का समय है ,मैं डरा हुआ हूँ सहमा हुआ हूँ,
बिजली कड़क रही है धड़कन -धड़क रही है
अब तुम यह खट्ट-खट्ट बंद कर दो
आधा सपने से जागा हूँ मुश्किल से भागा हूँ
तुमसे अच्छा तो वो सपना ही था डरावना था मगर नींद में था
मैं पूछता हूँ दरवाज़े पे कौन है ?
दरवाज़े से एक आवाज़ आयी मैं हूँ मैं
कौन मैं ? मैं हवा का एक झोंका हूँ
बारिश बहुत है ठण्ड बहुत है
साँस में साँस आयी , चिटकनी खोली, झोंका सीधा अंदर
बहुत परेशान था वेचारा
सोचा की ऐसे कैसे हो सकता है ?
हवा को भला हवा से परेशानी है ?
जैसे समुन्दर खुद डूब रहा हो कांटा खुद को चुभ रहा हो
सूरज आग सेक रहा हो चाँद देख रहा हो
पेड़ फल खा रहा हो मोमबत्ती जैसे अपने लिए जल रही हो
कुत्ता खुद के ऊपर भौंक रहा हो भगवान चौंक रहा हो
मैं जागा हुआ था पर फिर जागा चिटकनी खोली ,झोंका सीधा बाहर |
सुबह का समय है,खट्ट -खट्ट फिर एक आवाज़ आयी
मैं पूछता हूँ दरवाज़े पे कोन है ?
Poetry by – Suresh
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