है अगर चाँद, दूर धरती से तो क्या
उसे देख तो सकता हूँ
बादलों का पहरा है तो क्या
इंतज़ार तो कर सकता हूँ
आस-पास के तारों को देखना जरा मुश्किल है
आकार बदल कर तुम अपना,
दीदार तो कर सकता हूँ
है अगर चाँद, दूर धरती से तो क्या
उसे देख तो सकता हूँ
दाग है तुझमें तो क्या
नज़र तो उतार सकता हूँ ….
खुद की न रौशनी तो क्या
अंधेरे में तो चल सकता हूँ
है अगर चाँद, दूर धरती से तो क्या
उसे देख तो सकता हूँ ….
तू चलता हुआ प्रतीत होता है तो क्या
अफवाह पर विश्वास तो कर सकता हूँ
बीच में हे तेरे एक तारा तो क्या
अमन की बात तो कर सकता हूँ
छाननी लिए वो तेरा इंतज़ार करती है तो क्या
चाँद क्या होता है ? एहसास तो कर सकता हूँ ….
Written By – Suresh
nice post
आपके बेवसाईट पर दी गई जानकारी बहुत ही महत्व पूर्ण एवं उपयोगी हैं